चल रहा है सफ़र कुछ इस कदर , विश्वास पर विश्वास खो रहा हु । अकेले रहने मे अब खुश मे हो रहा हु, साथ था वो सोने सा, उसमे मिलावत हो गयी, पता नही किस बात कि ये नजाकात हो गयी । गलत समझ कर लोग मुझे गिनवायेनगे, पर दोस्त खोने का दुख ना मेरे लफ्ज बता पायेनगे ॥ १॥ पता नही किस घडी वो क़ाटा रुक गया, वो प्यार का पन्ना किताब से बिखर गया , बिखर गये वो सपने स़जोये हुये , मिट गयी वो यादे जो अभी हुयी नही । लगता है तुमको ये मेरी कहानी लग रही , पर जनाब ये मेरे मन कि हलचल बता रही । सम्भाल लुग़ा सब मै , मुझे खुद पर विश्वास है , बहुत पका दिया सबको क्युकि ये सारी बात बकवास है ॥ २॥ © ✐ प्रवीण कुमार
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आदरणीय RTU अधिकारी जी , महोदय मेरा नाम प्रवीण कुमार हैं में University College Of Engineering and Technology ,बीकानेर के अंतिम वर्ष का विद्यार्थी हूँ , मुझ पर आपके द्वारा UM (Unfair Means ) का केस बना हैं | यह केस संभवत मेरे earphone के इस्तेमाल के कारण हुआ है लेकिन सर मैंने earphone का इस्तेमाल किसी भी प्रकार की चीटिंग के लिए नहीं किया यह हमारी एक मानवीय भूल का नतीजा रही हैं | १. जब मैंने आपके द्वारा आयोजित Mock Exam में भी earphone का इस्तेमाल किया था तब मुझे किसी भी प्रकार की कोई चेतावनी नहीं मिली अतः मुझे लगा की earphone से कोई परेशानी नहीं हैं तथा २. मुझे पता था की यह exam में एक प्रॉक्टर ( Examiner ) होंगे जो हम पर दृष्टि रखेंगे तब मुझे लगा की यह प्रक्रिया सामान्य Offline Exam जैसी होगी अतः मैंने निर्देश प्राप्ति के लिए Earphone का इस्तेमाल किया जिससे मुझे सही निर्देश प्राप्त हो सके | परन्तु परीक्षा के दौरान मुझे चेतावनी मिली ईरफ़ोन निकालने की तब मेने तुरंत ही ईरफ़ोन निकाल दिया था जो की मेरे लैपटॉप से ही जुड़ा था जिस पर मैं परीक्षा दे रहा था | अतः इससे यहाँ पता चलता हैं की मेर
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एक सुनहरा सफर बात उस समय की है जब में बच्चा था , दिल का थोड़ा कच्चा ,पर इरादों का पक्का था | दसवीं ख़तम कर ग्यारवी की और जा रहा था , अपने सपनो की तरफ एक और कदम बड़ा रहा था | नया था स्कूल नए थे लोग , अपनेपन की थी कमी ,और दिखावे की थी होड़, सोचा था दूर रहूंगा इस माहौल से , पर किस्मत भी बड़ी टेडी चीज़ है , ले आयी उसी मोड़ पर | देखा एक लड़की को दिल रुक सा गया , फिर खुद को समझाया और कहा ये कोई प्यार नहीं जवानी की आग है , जिसका कोई वजूद नहीं और नहीं कोई औकाद है | समय बिता दिन बीते ,और समझ आया , आग नहीं जो बुझ जाये ये तो प्यार है || १|| जिस रास्ते जाने से डरता था , उसी मोड़ पर खड़ा हु | घर का बड़ा बेटा हु , और बड़ी है मेरे सपनो की प्यास , परिवार की जिम्मेदारी के बीच खुद को दबा दिया , और उस रस्ते से खुद को भगा दिया | आज भी वो गलिया याद आती है, वो ही पुराणी तस्वीर आँखों पर छा जाती है | अधूरी है ये कहानी , क्योकि अधूरी है इसकी हकीकत , सोचा लिखूंगा तब जब मिलेंगी फुर्सत || २ || ✎ ©प्रवीण कुमार