एक सुनहरा सफर 

बात उस समय की है जब में बच्चा था ,
दिल का थोड़ा कच्चा ,पर इरादों का पक्का था | 

दसवीं ख़तम कर ग्यारवी की और जा रहा था ,
अपने सपनो की तरफ एक और कदम बड़ा रहा था |
नया था स्कूल नए थे लोग ,
अपनेपन की थी कमी ,और दिखावे की थी होड़,
सोचा था दूर रहूंगा इस माहौल  से ,
पर किस्मत भी बड़ी टेडी चीज़ है ,
ले आयी उसी मोड़ पर | 

देखा एक लड़की को दिल रुक सा गया ,
फिर खुद को समझाया और कहा  ये कोई प्यार नहीं जवानी की आग है ,
जिसका कोई वजूद नहीं और नहीं कोई औकाद  है | 

समय बिता दिन बीते ,और समझ आया ,
 आग नहीं जो बुझ जाये ये तो प्यार है || १|| 

जिस रास्ते जाने से डरता था ,
उसी मोड़ पर खड़ा हु | 

घर का बड़ा बेटा हु ,
और  बड़ी है मेरे सपनो की प्यास ,
परिवार की जिम्मेदारी के बीच खुद को दबा दिया ,
और उस रस्ते से खुद को भगा दिया | 

आज भी वो गलिया याद आती 
है, 
वो ही पुराणी तस्वीर आँखों पर छा जाती है | 
अधूरी है ये कहानी ,
क्योकि अधूरी है इसकी हकीकत ,
सोचा लिखूंगा तब जब मिलेंगी फुर्सत || २ || 

✎  ©प्रवीण कुमार 

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