चल  रहा है सफ़र कुछ इस कदर ,
विश्वास पर विश्वास खो रहा हु ।
अकेले रहने मे अब खुश मे हो रहा हु,
साथ था वो सोने सा,
उसमे मिलावत हो गयी,
पता नही किस बात कि ये नजाकात हो गयी ।
गलत समझ कर लोग मुझे गिनवायेनगे,
पर दोस्त खोने का दुख ना मेरे लफ्ज बता पायेनगे ॥ १॥

पता नही किस घडी वो क़ाटा रुक गया,
वो प्यार का पन्ना किताब से बिखर गया ,
बिखर गये वो सपने स़जोये हुये ,
मिट गयी वो यादे जो अभी हुयी नही ।
लगता है तुमको ये मेरी कहानी लग रही ,
पर जनाब ये मेरे मन कि हलचल बता रही ।
सम्भाल लुग़ा सब मै , मुझे खुद पर विश्वास है ,
बहुत पका दिया सबको क्युकि ये सारी बात बकवास है ॥ २॥
 
                                                            © ✐ प्रवीण कुमार 











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